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इस मफ़लिसी के दौर से बचकर रहा करे / अनिरुद्ध सिन्हा
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इस मफ़लिसी के दौर से बचकर रहा करे
बाहर ज़मीं की धूल है अंदर रहा करे ।
दहलीज़ को खंगालती रहती हैं बारिशें
मिट्टी के इन घरों में भी छप्पर रहा करे ।
जिससे कि चाँद ख़्वाब के दामन में रह सके
आँखों में वो यक़ीन का मंज़र रहा करे ।
रिश्तों को आँख से नहीं इतना गिराइए
कुछ तो बिछुड़ के मिलने का अवसर रहा करे ।
गलियों में एहतियात के नारों के बावजूद
तहदारियों के हाथ में पत्थर रहा करे ।