भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस मिट्टी को ऐसे खेल खिलाया हमने / अमित शर्मा 'मीत'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस मिट्टी को ऐसे खेल खिलाया हमने
ख़ुद को रोज़ बिगाड़ा रोज़ बनाया हमने

जो सोचा था वह तो हमसे बना नहीं फिर
जो बन पाया उससे जी बहलाया हमने

ग़म को फिर से तन्हाई के साथ में मिलकर
हँसते हँसते बातों में उलझाया हमने

नामुमकिन था उसको हासिल करना फिर भी
पूरी शिद्दत से ये इश्क़ निभाया हमने

उसकी यादें बोझ न बन जाएँ साँसों पर
सो यादों से अपना दिल धड़काया हमने

कह देते तो शायद अच्छे हो जाते पर
ख़ामोशी से अपना मर्ज़ बढ़ाया हमने

उसका चेहरा देख लिया था एक दफ़ा फिर
इन आँखों से सालों कर्ज़ चुकाया हमने