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इस लिए हम लोग घबराने लगे हैं / ज्ञान प्रकाश विवेक
Kavita Kosh से
इसलिए हम लोग घबराने लगे हैं
भेड़िए तहज़ीब सिखलाने लगे हैं
बंद कमरे में है सब कुछ ठीक लेकिन
फूल गुलदस्ते के मुरझाने लगे हैं
पेशकारों की ज़रा जुर्रत तो देखो
मुंसिफ़ों को आँख दिखलाने लगे हैं
गायकों का आचरण क्या ख़ूब बदला
जन्मदिन पर मर्सिया गाने लगे हैं
इस शहर की धूप यूँ आँखों में उतरी
ख़ुद को हम धुँधले नज़र आने लगे हैं