Last modified on 13 सितम्बर 2010, at 22:47

इस लिए हम लोग घबराने लगे हैं / ज्ञान प्रकाश विवेक

 
इसलिए हम लोग घबराने लगे हैं
भेड़िए तहज़ीब सिखलाने लगे हैं

बंद कमरे में है सब कुछ ठीक लेकिन
फूल गुलदस्ते के मुरझाने लगे हैं

पेशकारों की ज़रा जुर्रत तो देखो
मुंसिफ़ों को आँख दिखलाने लगे हैं

गायकों का आचरण क्या ख़ूब बदला
जन्मदिन पर मर्सिया गाने लगे हैं

इस शहर की धूप यूँ आँखों में उतरी
ख़ुद को हम धुँधले नज़र आने लगे हैं