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इस शहर की हालत आज ऐसी है / बैर्तोल्त ब्रेष्त / अनिल जनविजय

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इस शहर की हालत आज ऐसी है
कि मुझे करना पड़ता है काम कुछ इस तरह —
कहीं भी जाता हूँ तो सबसे पहले
बताता हूँ अपना नाम
फिर पेश करता हूँ
सबूत में पक्के दस्तावेज़ मुहर लगे
जिनकी नक़ल करना सम्भव नहीं ।

जब किसी को कुछ बताता हूँ
तो अपनी बात के सबूत में
पेश करता हूँ गवाहों को
जिन्हें अपनी पहचान बतानी पड़ती है
पक्के दस्तावेज़ों के सहारे ।

चुपचाप मैं अपने चेहरे को बना लेता हूँ
भावरहित, ताकि यह साफ़-साफ़ पता लगे
कि मैं कुछ भी नहीं सोच रहा हूँ ।
इस तरह, बस, मैं किसी को
अपने ऊपर भरोसा नहीं करने दूँगा
किसी भी तरह के भरोसे को मैं करता हूँ ख़ारिज ।

मैं ऐसा करता हूँ यह जानते हुए
कि इस शहर की हालत आज ऐसी ही है
कि किसी पर भरोसा करना सम्भव नहीं है ।

फिर भी कभी-कभी ऐसा होता है
जब मैं होता हूँ परेशान या अनमना
वे मुझे उलझन में डाल देते हैं
और पूछते हैं सवाल — मैं दगाबाज़ तो नहीं हूँ,
छल तो नहीं कर रहा हूँ उनके साथ ?
झूठ तो नहीं बोल रहा हूँ मैं ?
कुछ छुपा तो नहीं रहा ?

और मैं, फिर अटक जाता हूँ
बहकने लगता हूँ और वो सबकुछ भूल जाता हूँ
जो सबूत हो सकता है मेरे मैं होने का
और मुझे शर्म आने लगती है ख़ुद पर ।

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय