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इस शहर में कुछ नई बातें हुई हैं / विनोद तिवारी

इस शहर में कुछ नई बातें हुई हैं
रास्तों के बीच दीवारें उगी हैं

हर तरफ़ फैले मुखौटे ही मुखौटे
और चेहरे भी यहाँ असली नहीं हैं

बेख़बर मौसम में सब सोये पड़े हैं
और बाँधों में दरारें पड़ गई हैं

गंदगी के ढेर बढ़ते जा रहे हैं
जिस जगह पर तीसरी दुनिया बसी है

किसके आगे अपना दुख रोए ग़ज़लगो
दोस्तों की शायरी से दुश्मनी है