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इस सुकूते फ़िज़ा में खो जाएं / फ़िराक़ गोरखपुरी
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इस सुकूते-फ़िज़ा<ref>मौसम का मौन</ref> में खो जाएं
आसमानों के राज़ हो जाएं
हाल सबका जुदा-जुदा ही सही
किस पे हँस जाएं किस पे रो जाएं
राह में आने वाली नस्लों के
ख़ैर कांटे तो हम न बो जाएं
ज़िन्दगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त
सोच लें और उदास हो जाएं
रात आयी 'फ़िराक़' दोस्त नहीं
किससे कहिए कि आओ सो जाएं
शब्दार्थ
<references/>