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इहाँ जवन गीत गावे हम अइलीं / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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इहाँ जवन गीत गावे हम अइलीं
तवन गा ना सकलीं।
रह गइल बेगावले ऊ गीत
जवन गावे खातिर अइलीं।
आजले खाली
सुरे साधत रह गइलीं
वीणा के तारे कसत रह गइलीं
गावे खातिर
सुरे-सर करत रह गइलीं
सोचते रह गइलीं
जवन सुर साधे के चहलीं
से सधा ना सकल
स्वरन में समता आ ना सकल।
जे कहे के चहलीं
से कहा ना सकल
हमार वाणी
लड़खड़ात रह गइल
गावे के बेचैनी
खाली हमरा प्राण में बा
हमार प्राण त गीत गावे खातिर
आकुल बा व्याकुल बा।
बाकिर ऊ फूल
आजो ले ना फूटल
गीतांजलि/रवीन्द्रनथ ठकुर-92 सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’-93
आजो ले ना खिलल
ई त खाली एगो बेयार बहल बा
जइसे डोल रहल बा ऊ फूल
हिल रहल बा ऊ फूल
हम ना उनकर मुँह देखले बानीं
ना बोली सुनले बानीं
बाकिर हर घड़ी, हर पल,
उनकर पदचाप सुनते रहिले
सुनाते रहेला छने छन
उनका चरनन के आवाज।
हमरा दुआरी का सामने से
(हमरा दुआरिए परे)
उ हरदम आवेले, हरदम जाले।
उनका खातिर खाली आसन डासन में
हमार समूचा दिन सरक गइल
घर में दीयो ना बराइल।
उनका के पुकारीं केंगईं?
उनका के बोलाईं केंगईं?
बाकिर मिलिहें ऊ जरूर
अइहें ऊ जरूर
आस लागल बा
विश्वास जमल बा।
अबहीं ले ऊ ना भेंटइले
बाकिर भेंटइहें ऊ जरूर।