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ईंट के मकान / मोहन राणा
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नई-सी बात बारिश में भीगना
और चौंक उठना उस पर,
इस ईंटों के शहर में पहली सुबह
समेटता कपड़ों को बहुत से विचारों को
सफ़र की धूल को
किसी सपने को अपने साथ
पर हम सभी भीग जाते हैं
ईंटों पर काले निशानों की तरह
बचे बुलबुले सतहों पर
सुनते कुछ चुपचाप
बारिश के आत्मलाप में
18.08.1999