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ईजा तलबी (सॉनेट) / ज़िया फतेहाबादी
Kavita Kosh से
तुझ को देखा तो थी नज़र की ख़ता
आह खींची तो बेकरार था दिल
नामुराद और सोगवार था दिल
जो हुआ जोश ए बेख़ुदी में हुआ
याद आती रही तेरी शोखी
भूल कर भी तुझे भूला ना सका
बात बिगड़ी हुई बना ना सका
रोज़-ओ शब् दिल की बेकली ना गई
राज़-ए वहशत सबा ने ताड़ लिया
गुल-ओ बुलबुल से कह दिया जा कर
अहल-ए गुलशन ने वज्द में आ कर
कह दिया तुझ से माजरा सारा
डर है , अब तू खफ़ा न हो जाए
दर्द दिल की दवा ना हो जाए