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ईश्वर के दलाल / विनोद दास

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करुणाहीन आकाश तले
यह दुनिया उसे कितनी निर्मम लगी होगी
और उसने अपने को कितना निष्कवच समझा होगा
जब अहो-अहो की करतल ध्वनि के बीच
अधमुँदी आँखों के साथ पदमासन में बैठे
इस विभूति की शरण में अन्ततः आया होगा

वह वहाँ खोजता है ईश्वर
जैसे अपनी छड़ी से टटोल कर खोजता है
एक अन्धा बच्चा अपने पिता को
एक विशाल मैदान में

क्या ईश्वर के पास सीधी सुनवाई नहीं है
क्या वहाँ भी प्रवेश निषिद्ध की तख्ती बाहर टँगी हुई है
हमारे यहाँ के दफ़्तरो की तरह
जहाँ चपरासी के हाथ गर्म किए बिना
अपारदर्शी दरवाज़ों को पारकर
कोई जल्दी नहीं पहुँच पाता है
अफ़सर के पास

मद्धिम प्रकाश से दीप्त
आधुनिक आश्रम में
कोई चुपके से
उसके कान में आकर धीरे से फुसफुसाता है
कि बाबा के आप्त वचनों में
संसार के सभी मर्ज़ों का इलाज़ है

हालाँकि हकीक़त यह है
कि बाबा के निजी वैद्य
और उनके अन्तर्वस्त्र के सिवा
यह राज़ कोई नहीं जानता
कि बाबा ख़ुद बवासीर के रोगी हैं
उनकी गुदा के मस्सों से फूटता है रक्त

शायद ईश्वर बेरोज़गार होता
और ऐसी विभूतियाँ भी
यदि हमारा घर, पास-पड़ोस प्यार से भरा होता
हमने दुखियों की भाषा पढ़ ली होती

दुख और दरिद्रता का इतना बड़ा साम्राज्य न होता
और सरकारी व्यवस्था इतनी क्रूर और अनुदार न होती
कि किसी को भी मामूली ज़रूरतों के लिए
मरघट तक दर-दर भटकना पड़ता

हालाँकि ये ऐसे-वैसे सन्त नहीं हैं
जो घर-गृहस्थी तजकर
किसी पर्वत या घाटी की निर्जन कन्दरा में
करते हैं योग-ध्यान

ये समादृत सन्त
वातानुकूलित भवनों में रहते हैं
कालीनों पर चलते हैं
विदेशी महँगी कारों में घूमते हैं

इनके कब्ज़े में है
सैकड़ों एकड़ ज़मीन
सेवा टहल के लिए हैं
बेहिसाब भोले-भाले तामीरदार

इनकी चिलम के गांँजे की तेज़ गन्ध में
उड़ते रहते हैं
देश के मादक द्रव्य कानून

आप इनके जोगिये परिधान से धोखा मत खाइए
संस्कृत के श्लोकों पर लट्टू मत होइए

ये ऐसी मायावी विभूतियाँ हैं
जिनकी सदाचारी लीलाओं के लिए
मिलती रहती है उन्हें क़ैद

इनकी आँखों में
लोभ की चिंगारियाँ हैं

स्पर्श में
केलि के इशारे हैं

आशीर्वाद में
विश्वास का विष है

वायुमण्डल में तैरती रहती है यह बात
जितने वे क़ैद में हैं
उससे कई गुना ऐसे सुपात्र
विचर रहे हैं बाहर

दरअसल ये सन्त नहीं, ईश्वर के आधुनिक दलाल हैं

मनुष्यता के लिए
ये सबसे बड़े खतरा हैं
लेकिन यह सबसे बड़ा षडयंत्र है
कि इसे कोई खतरा नहीं मानता

इनकी चरण-रज में
कोई तलाशता है तरक्की और तबादले
कोई मंत्री-पद के लिए वोट
कोई वंश चलाने के लिए सन्तान

अशान्तिभरी लौकिक दुनिया में
कुछ तलाशते हैं
थोड़ी सी पारलौकिक शान्ति

संसार का यह घोर आश्चर्य है
वह अपनी अमूर्त सम्मोहक भाषा में
जीवन-जगत की अमूर्त व्याख्या से
हमारे समय के सबसे तेज़ दिमागों को भी बना लेते हैं
अवचेतन में अपना ग़ुलाम

देखो !
राष्ट्रीय अन्तरिक्ष अनुसन्धानशाला के वैज्ञानिक को
ध्यान से देखो !

स्वर्ग के लोभ से पराभूत
मोक्ष के लिए आकुल-व्याकुल
इस दलाल के पाँव के गन्दे अँगूठे को धोकर
वह कितनी श्रद्धा से
चरणामृत की तरह पी रहा है

और उसका विवेक फिस्स से हंसता है
और करवट बदलकर सो जाता है

हद है
विवेक के सपने में
ईश्वर भी नहीं आते ।