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ई-मेल / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
नई सदी की भाग-दौड़ में
पोस्टकार्ड रह गया फिसड्डी
आगे निकल गई ई-मेल।
इंटरनेट देश में आया,
कंप्यूटर से मेल कराया,
पंख लग गए संदशों को,
कागज-पत्र हो गए रद्दी,
चिट्ठी-पत्री हो गई फेल।
समझदार को सुविधा है ये,
नासमझों को दुविधा है ये,
वक्त घटा, घट गई दूरियाँ,
मेल-मिलाप हो गया जल्दी,
पर खतरों का है ये खेल।