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ई केहेन हूलि-मालि / अविरल-अविराम / नारायण झा

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बनल छै छोट-छोट
खोपड़ी आ कपड़ाघर
रहैत छै मास करबाक लेल
स्त्री आ पुरूख
सार्थक करै लेल जीवन
अरजै खातिर धर्म

एक दिस घाट पर
राखल छै लहास
जकर कयल जेतै गति
अन्तिम यात्राक पूर्ण विराम हेतु
जे भेटि पओते मोक्ष

एक दिस पतियानीमे
बैसल छै
लुल्ह-नांगर, बहीर-आन्हर
तकरा कप्पा पर
फेकल जाइत छै
टाका आ अन्न
भरय लेल पेट
कमयबा लेल धर्म

एम्हर गंगाक बीचोबीच पैसि
किछु सन्त
पढ़ि रहल छै निरंतर मंत्र
लगबाक लेल सुठाम
जीवनसँ पएबा लेल उद्धार

धर्रोहि लागल छै लोकक
डूब देबय लेल
आ कटएबा लेल
जन्म-जन्मांतरक पाप

एम्हर काते-कात
लागल छै दोकान
जाहिमे नहा-नहा सभ
खाइत छै चूड़ा-दही, जिलेबी
ओ बेचि रहल छै
चलएबा लेल पेट
अरजबा लेल अर्थ

किछु पतित कामी
आँखि गड़ेने छै
नहाइत स्त्री दिस
करबा लेल पूर्ण काम

जीवनक ई केहेन हूलि-मालि
देखि रहल छी
से मोने-मोन
गुनि रहल छी।