भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ई दुनिया / निर्मल सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बेरहमी सें हमरा सतावै छै दुनियाँ
हाँसी-हाँसी हमरा कनावै छै दुनियाँ

जेहनोॅ छी हम्में, ऊ ओहने ठहरलै
पर हमरा पेॅ औंगरी उठावै छै दुनियाँ

सुक्खोॅ के ताज अपना माथा पर लेलेॅ
जुल्म हमरा पेॅ ढाहै-गिरावै छै दुनियाँ

खबर पूछै छी हम्में आपनोॅ सनम रोॅ
मरी जाय के तालीम सिखावै छै दुनियाँ

हुनकोॅ ख्यालोॅ में गमगीन ‘निर्मल’ छै
‘निर्मल’ केॅ पागल बतावै छै दुनियाँ ।