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ई देश हमर / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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ई देश हमर, सन्देश अमर
युग-युगसँ जगकेँ दैत रहल,
पुरुषत्व हमर, मनुजत्व हमर
मानवताकेँ सजबैत रहल।
हम इतिहासक निर्माता छी,
नव मुक्ति-मन्त्र उद्गाता छी,
दलितक, पतितक नव अध्वायक
पन्ना तपि-तपि पलटैत रहल।
ई देश हमर, सन्देश अमर
युग-युगसँ जगकेँ दैत रहल।
‘याचितारश्च माच कंचन’ कहि हम
वन्दना करी पितरक श्रद्धासँ,
राखिहृदय विश्वास चरम
चौदिशसँ आयल संस्कृतिकेँ
निष्कपट भेल पचबैत रहल।
ई देश हमर, सन्देश अमर
युग-युगसँ जगकेँ दैत रहल।
कयलक नहि ककरो रोमभंग,
औदार्यभाव शत्रुहुक संग-
रखइत, सहलक विश्वासघात,
दुख-सागरकेकँ उपछैत रहल।
ई देश हमर, सन्देश अमर
युग युगसँ जगकेँ दैत रहल।
यदि गदह-पचीसी बीति गेल,
देशक हित मनमे प्रीति भेल,
दृढ़ बढ़त चरण प्रगतिक पथपर,
उत्साहभाव उछिलैत रहल।
ई देश हमर, सन्देश अमर
युग युगसँ जगकेँ दैत रहल।