उचित नहीं है शोहरत पा लेना ।
समारोहित होना प्रशंसा की बात नहीं ।
ज़रूरत नहीं है अपनी रचनाओं को कोषगत कर रखने की
और न ज़रूरत है रखने की उन्हें मेहराबी गर्भगृहों में ।
सर्जन वह है जिसमें तुम अपना सब कुछ करते हो उत्सर्ग
शोर व सरापा ठीक नहीं और न छा जाना दूसरों पर ग्रहण बनकर ही
तुम्हारे होने का जब कोई अर्थ नहीं लगता
तब कितनी लज्जाजनक है चर्चा हर व्यक्ति के अधरों पर ।
चेष्टा मत करो झूठे अधिकार वाली ज़िंदगी के लिए
बल्कि अपने कार्य-कलापों को ऐसे ढालो
कि दूर-दूर की सीमाओं तक तुम्हें प्यार मिले
और सुन सको तुम आनेवालों वर्षों में होने वाली अपनी चर्चा ।
जीवन में रिक्तता रखो, रचनाओं में नहीं
और अपने अस्तित्त्व और अपनी होनी के
सम्पूर्ण अध्याय को, सम्पूर्ण खंड को
रेखांकित कर रखने में मत हिचकिचाओ ।
अवकाश ग्रहण कर अनदेखे में
कोशिश करो प्रच्छन्न रखने की अपने विकास को
जैसे तड़के सुबह, शिशिर की कुहेलिका छ्पा कर रखती है
अपने अंक में सपनाते ग्रामांचल को ।
तुम्हारे जीवंत चरण-चिह्नों पर
दूसरे जाएँगे क़दम-ब-क़दम चलकर
किंतु अपनी पराजय से स्वयं तुम
अपनी विजय अलग मत दरसाओ ।
और एक क्षण के लिए कभी भी अपने जज़्बात को
मत छलो और न बहाना ही करो छलने का ।
किंतु ज़िंदा रहो यही असलियत है
जीवंत रहो, जीवंत और तपित रहो अंत तक ।
अँग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : अनुरंजन प्रसाद सिंह