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उजाले की ओर / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव
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चलो उजाले
की ओर चलें
अब बंधु अँधेरे से
इच्छाओं के
अँधियारे ने
कितने ही स्वाँग रचे
भूल चुके हम
मंत्र अपरिग्रह
सब स्वारथ कीच धँसे
कई युगों से
बंद रहे हम
अब निकलें डेरे से
सोन चिरैया
बैठ डाल पर
गीत भोर के गाये
अँधे युग के
सपन छोड़कर
सूर्य देव उग आये
यही समय है
निकलें हम-तुम
पिछले जड़ घेरे से
नये दिनों की
नई सोच है
नई रीतियाँ बोयें
पिछले दिन जो
रही कलुषता
मिलकर अब तो धोयें
शीश झुकाकर
प्रभुवर जी को
हम चलें सबेरे से