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उठती हूक/ रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
21
हुड़क उठी
बिछुड़े, झील- नैन
पोंछ न सके।
22
पी लिया नीर
उत्तर दिए बिना
शाप ही मिला ।
23
चाँद अकेला
अम्बर से ताकता
झील है दूर ।
24
व्याकुल चाँद
घाटियों में भटका
मिली न झील
25
कौन है क्रूर
विष बोकर चाहे
झील हो दूर ।
26
अरे कुबेर!
सुखाकर मिला क्या
निर्मल झील।
27
लूटी है छाया
झील का मधु -नीर
लू ने सुखाया।
28
न हो उदास
तुम पाओगे चाँद!
झील को पास ।
29
खुला झरोखा
झील पर फिसला
चाँद का मन ।
30
उठती हूक
प्रतीक्षारत झील
प्रिय को ढूँढे ।
31
सिमटी झील
खो गए दो किनारे
बची कीचड़।