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उठा के हाथ लेता हूँ बढ़ा के हाथ देता हूँ / जगदीश तपिश
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उठा के हाथ लेता हूँ बढ़ा के हाथ देता हूँ
वो देने वाला देता है मैं ले के बाँट देता हूँ
बहुत दुश्वार राहे इश्क पे चलना है ऐ राही
ठहर जाओ मैं तुमको दूर तक आवाज़ देता हूँ
ज़माना मुझपे हँसता है मुझे पाग़ल समझता है
अगर मैं डूबने वाले को अपना हाथ देता हूँ
तड़पते हो सितम करते हो मुझपे और ख़ुद पे भी
मेरे दिन मुझ को लौटा दो मैं तुमको रात देता हूँ
नहीं दिल मैं तपिश कुछ भी फ़कत है आरजू इतनी
अगर लब खोलना चाहो तो मैं अल्फाज़ देता हूँ
