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उठा है दर्द का तूफां जिगर से चेहरे तक / मोहित नेगी मुंतज़िर

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उठा है दर्द का तूफां जिगर से चेहरे तक
 निकल न जाये कहीं दम मिरा सवेरे तक।

वो गर्मजोशी से करता रहा मिरा स्वागत
मिरे बचे हुए जीवन के पल सुनहरे तक।

मिरा सियासती मैदान है बहुत छोटा
बस अपने दिल से शुरू होके अपने डेरे तक।

ज़मीन दौलत-ओ-शुहरत सभी मिरा है यहां
मगर जहान में केवल मिरे बसेरे तक।

हां ! मिलने आएंगे मुझसे वो चाहे सपने में,
 मैं उनका रास्ता देखूंगा कल सवेरे तक।