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उठो, मंजिल तुम्हारी है / धीरेन्द्र अस्थाना
Kavita Kosh से
सूरज की किरणें
देती सतत संदेश,
तम का आवरण
हटा कर प्रकाशित
करो निज के अंतस को!
वायु का प्रवाह
जैसे देता जीवन को
नव संचेतना,
भर दो जग में
अप्रतिम संचार!!
नदी की धारा
सिखाती हमें,
निरंतर गति ही
है जीवन का मूल
और प्रगति का मन्त्र!!
चाँद की शीतलता
भरती हृदय में भाव,
बनो तुम विनम्र
कितने ही मिलें तीक्ष्ण
और कठोर क्षण!!
डिगे न कभी तुम्हारा
धैर्य और टूटे न
हिम्मत की डोर,
सहन शक्ति का संदेश
देता यह धरती का धैर्य!!
जब सभी शक्तियाँ
और करने की क्षमता,
है तुम्हारे पास,
तो चल पड़ो अपनी
मंजिल की ओर!
है जो आतुर फैलाये
बाँहें तुम्हारे स्वागत के लिए!