भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उठो-उठो / त्रिलोकीनाथ दिवाकर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उठो-उठो हो बाबू भैया
डूबी रहिलो छै देशो के नैया
कोये नै बढ़िया खेबैया
उठो-उठो हो बाबू भैया।

गुंड़ा आपनो धाक जमाय छै
प्रशासन ओकर साथ निभाय छै
नै छै निर्दोषो के बचबैया,
उठो-उठो हो बाबू भैया।

शिक्षा के स्तर गिरलो जाय छै
चोर उचक्का बनलो जाय छै
बचथौं नै स्कूल मे पढ़बैया
उठो-उठो हो बाबू भैया।

पसरलो छै तिलको के आगिन
डसी रहलो छै बनी के नागिन
कोय नै छै बिषों के झरबैया,
उठो-उठो हो बाबू भैया।

धरम-धरम मंे होय छै दंगा
मौत नाचै बनी के नंगा
कोय नै एकरा रोकबैया
उठो-उठो हो बाबू भैया।

सब्भै मिली के देश बचाबो
दुनिया में सब नाम कमाबो
नै त‘ कान्थौं भारत मैया,
उठो-उठो हो बाबू भैया।