उठ कमर कसो कुछ काम करो / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
ओ स्वत्व-समर के सेनानी विजयी वीरो!
ओ स्वतन्त्रता के सरस गीत गाने वालो!
समझो न तुम्हारा पूर्ण हो चुका काम अभी
जो शेष अभी कर्त्तव्य उन्हें देखो-भालो!
प्रतिवर्ष हर्ष से आज़ादी का पर्व मना-
पूजा करना ही ध्येय न सिर्फ तुम्हारा है।
कुछ होश करो, जिस पर सवार हो अरे अभी,
उस जर्जर जीर्ण तरी से दूर किनारा है॥
जिसके बल पर है गर्व हो रहा आज तुम्हें,
गौरवमय जिससे आज स्वजीवन भारी है।
अगणित वीरों के शोणित से सिंचित होकर,
यह फूल सकी आज़ादी की फुलवारी है॥
हर समय यही अब ध्यान तुम्हें रखना होगा,
रुक पाये इसका किंचित कभी विकास नहीं।
आने पाये पतझर भूल कर भी न यहाँ-
क्षण भर भी इससे रुठ सके मधुमास नहीं॥
हो तुम्हीं चतुर माली अब तो इस उपवन के,
तुमको अपना उत्तरदायित्व निभाना है।
जिसकी सौरभ से गमक उठे धरती सारी,
भारत को वह नन्दन-वन तुम्हें बनाना है॥
इसलिए समुन्नत भाल अभय हो बढ़े चलो,
तूफानों से टक्कर लो डर कर झुको नहीं।
जो लक्ष्य अभी है दूर उसी का ध्यान रहे,
पथ को ही मंज़िल मान बीच में रुको नहीं॥
इतिहास यही कहता अतीत का बार-बार,
अपने बल पौरुष से स्वदेश-परित्राण करो।
जो मुक्त हो सका है सदियों के बाद कहीं,
जर्जरित राष्ट्र का मिल कर नवनिर्माण करो॥
तुम करो अथक श्रम इतना सबल भुजाओं से,
यह भूमि उगल दे सोनो-चाँदी-हीरों को।
इस धरती पर सुरलोक रचा दो एक नया,
जड़ से काटो निर्धनता की जंजीरों को॥
खुद जिओ और जीने दो औरों को सुख से,
मानव बन कर मानवता का सत्कार करो।
जो दीन-हीन हैं दलित-पतित जगतीतल में,
उन सबको गले लगा कर दिल से प्यार करो॥
सौगन्ध तुम्हें उन अगणित अमर शहीरों की,
निज लक्ष्य प्राप्ति हित तनिक नहीं विश्राम करो।
निष्क्रिय बन कर मत करो पतन का आवाह्न,
सोचो-समझो ‘उठ कमर कसो कुछ काम करो’॥