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उठ किसान क्यूं नींद म्हं सोवै, दुश्मन नै पछाण ले / रामधारी खटकड़

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उठ किसान क्यूं नींद म्हं सोवै, दुश्मन नै पछाण ले
आप लड़्यां बिन मुक्ति कोन्या, इन बातां नै जाण ले
 
सारा साल खेतां म्हं मरता, खून पसीना एक करै
जाडा-पाळा, कीड़ी-कान्डा, ना किसे किसम का खौप तेरै
तन पै तेरे पाट्टे लत्ते, आंख्यां के म्हं धूळ भरै
तेरा नाज मण्डी म्हं हान्डै, बणिया उसे नीलाम करै
यू चक्कर सै घणा कसूता, अपनी जेळी ताण ले
आप लड़्यां बिन मुक्ति कोन्या, इन बातां नै जाण ले
 
बोटां आळे बेकूफ बणाज्यां, ताऊ-ताऊ कर्या करैं
धौळ-पोस के काम लिकड़ज्यां, तेरै बरगे मर्या करैं
इनके झूठे वादे भाई, तेरै क्यूकर जर्या करैं
छोरा लुवाण नै करजा ले लिया, सारी उम्र तौं भर्या करैं
इन चालां ने समझ रै बावळे, मेरी बातां नै मान ले
आप लड़्यां बिन मुक्ति कोन्या, इन बातां नै जाण ले
 
मन्दर-मस्जद के झगड़े म्हं, ना भाई-भाई तकरार करो
इन्सानां की ढाळ रै लोगो, इक दूज्जै तै प्यार करो
लूट अड़ै तै खतम होवै तुम, इसा कसूता वार करो
जे जिन्दा तुम रह्णा चाहो, अपणी लाठी त्यार करो
तेरे हक पै डाका पड़ण लागर्या, कर अपणा तराण ले
आप लड़्यां बिन मुक्ति कोन्या, इन बातां ने जाण ले
 
ईब तनै जी तै मारैंगे डंकल चाल्या आवै सै
सबसीडी न घोळ कै पीगे, अमरीका कांख बजावै सै
फाळी की बन्दूक बणाले, जे सुख तै जीणा चाहवै सै
रामधारी नै कफन बांध लिया, गेल्यां तनै बलावै सै
हरियाणा म्हं पाज्यागा, तौं उसकी माटी छाण ले
आप लड़्यां बिन मुक्ति कोन्या, इन बातां नै जाण ले