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उड़ानों की हर इक सीमा गगन पे आ के रुकती है / भावना
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उड़ानों की हर इक सीमा गगन पे आ के रुकती है
प्रथम सीढ़ी सफलता की सपन पे आ के रुकती है
यहां खरगोश को भी मात दे जाता है इक कछुआ
विजय की हर कसौटी तो लगन पे आ के रुकती है
बड़ी ही खोखली लगती वहां सम्मान की बातें
जहां औरत की चर्चा बदन पे आ के रुकती है
न ये जज्बात खो जाये कहीं वज्नों के मेले में
गजल की कामयाबी तो कहन पे आ के रुकती है
घरों में कैद रहते हैं उन्हें अहसास क्या होगा
नजर इन तितलियों की क्यूं चमन पे आ के रुकती है
न जाने कौन-सी मिट्टी खुदा ने दिल में है डाली
उगे हर ख्वाब की सीमा कफन पे आ के रुकती है