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उत्सव के बाहर / शुभा
Kavita Kosh से
बहुत दिन हुए नहीं देखी हरियाली
न पेड़ न कोई बच्चा न घास का तिनका
न प्राणवायु गुज़री इधर से
सम्वेदनाएँ ख़़ून की कमी की शिकार हो चली हैं
एक बच्ची की लाश दिखाई देती रही
पानी के टैंक में पड़ी
उसके साथ स्कूल में बलात्कार हुआ था
छोटी-छोटी बच्चियाँ दिखाई दीं मातम में बाल खोले
वे रो नहीं रही थीं
चारों ओर फैले थे बच्चियों के भ्रूण
माता-पिता और न्यायाधीश
टीचर और मसीहा
पत्रकार और सेनानायक
चले गए थे एक उत्सव में शामिल होने के लिए।