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उथल पुथल मचगी दुनियां म्हं / ज्ञानी राम शास्त्री

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उथल पुथल मचगी दुनियां म्हं, निर्धन लोग तबाह होग्ये
कोए चीज ना सस्ती मिलती, सबके ऊंचे होग्ये

असली चीज मिलै ना टोही, सब म्हं नकलीपण होग्या
बिना मिलावट चैन पड़ै, सब का पापी मन होग्या
दिन धोळी ले तार आबरु जिसकै धोरै धन होग्या
निर्धन मरजै तड़फ तड़फ कै, इतना घोर बिघन होग्या
इज्जतदार मरैं भूखें, बदमाश लफगें शाह होग्ये

ठाड़े धरती के मालिक, नक्शे इंतकाल भरे रहज्यां
पकड़े झां निर्दोष पुरुष, पापी बदकार परे रहज्यां
घर बैठें लें देख फैसला, गवाह वकील करे रहज्यां
जिसकी चालै कलम पकड़ लें, सब कानून धरे रहज्यां
क्यूंकर मुलजिम पकड़े जां जब अफसर लोग ग्वाह होग्ये

बेरोजगारी की हद होगी, पढ़े-लिखे बेकार फिरैं
घटी आमदनी बधगे खर्चे, किस-किस कै सिर मार मरैं
बड़े-बड़े दो पिस्यां खातर, अपणी इज्जत तार धरैं
धर्म के ठेकेदार बी, भूंडी तै भूंडी कार करैं
भोळे लोगां नै लूटण के , बीस ढाळ के राह होग्ये

कई जणां कै कोठी बंग़ले, लाईन लागरी कारां की
पड़े सड़क पै कई जणे, लाठी बरसैं चौंकीदारां की
बिस्कुट दूध-मलाई खावैं, बिल्ली साहूकारां की
खाली जून टळै भूख्यां की, निर्धन लोग बेचारां की
“ज्ञानी राम” न्यूं देख-देख कै, घणे कसूते घा होग्ये