भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उदंकार / बलबीर राणा 'अडिग'
Kavita Kosh से
कत्गा कयांरू कत्गा रैबार
बाटा मां किले बिरहक पराग
पराणी गाणी कंठ भोरी भोरी
कभी त् दिखलू मायाक चिराग
आँशुक तबराट् कबैर तलक रैलू
बोऽडी ऐ जावा एक बार
हैंसी जाली यु भिजिं आँखी
होंठऽक नि रैंलू अब ककडा्ट
ऐ जालू म्यारा भी जीवन मा बसंत
ज्वानीक दिन छन द्वि चार
बोऽडी ऐ जावा एक बार
बांजा पुंगडी् बीज जमला
रुखडा् धारुं मां पाणिक छपळाट
इकुलांस डंड्याळी रोणक राली
मेरा ज्यू मां उदंकार
बोऽडी ऐ जावा एक बार।