भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उदासीनता / शहनाज़ इमरानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ यूँ लग रहा है
कि थम गई हो हर चीज़ जैसे
ख़याल को लग गया हो ज़ंग

वो बे-तरतीब-सी बातें
बीच में खो गईं कहीं
जिन पर नहीं लिखा था पूरा पता

बर्फ़-सी जमी उदासीनता
सब तरफ और होने के
नाटक में शामिल हूँ --- मैं

ख़ुद से बच कर निकलना चाहती हूँ
पर बच कर निकलने वालों के पास
आती नहीं है -- कविता !!