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उदासीन तरुणी के प्रति / रमानाथ अवस्थी

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देख रहा हूँ जीवन में मैं तुमको पहली बार
शायद मेरी तरह तुम्हें भी हुआ किसी से प्यार

अम्बर ऊपर चाँद चूमता है तारों के गाल
तुम मत देखो चाँद शरम से हो जाओगी लाल
तुम फूलों के बीच कली हो कल खिल जाओगी
चार दिनों में भौंरों से भी हिलमिल जाओगी

बूढ़ी दुनिया की ख़ातिर हो तुम नूतन उपहार
देख रहा हूँ जीवन में मैं तुमको पहली बार

वीणा के टूटे तारों-सी तुम बिल्कुल चुपचाप
लगता है तुम कहीं किसी से उलझीं अपने आप
जीवन के हाथों में तुम हो एक नई तक़दीर
तुमको अपनाने के ख़ातिर होंगे बहुत अधीर

जाने किसके लिए हो तुम इतना शृंगार
देख रहा हूँ जीवन में मैं तुमको पहली बार

तुम जैसा ही सुन्दर होगा सुमुखि तुम्हारा नाम
जग ने तुमको भी करना चाहा होगा बदनाम
तुमने कभी किसी से कह दी होगी मन की बात
हुई न होगी पूरी रोई होंगी पिछली रात

तुमको रोता देख हँसा होगा सारा संसार
देख रहा हूँ जीवन में मैं तुमको पहली बार

तुमने भेजा होगा लिखकर पत्र किसी के पास
मिला न होगा उत्तर शायद तुम इसलिए उदास
बैठ तुम्हारी छत पर कागा बोला होगा आज
आगन्तुक से मिलने को मन डोला होगा आज

तुम झुँझलाई होंगी मन में पथ निहार-निहार
देख रहा हूँ जीवन में मैं तुमको पहली बार ।