उदासी आसमाँ है दिल मेरा कितना अकेला है
परिंदा शाम के पुल पर बहुत ख़ामोश बैठा है
मैं जब सो जाऊं इन आँखों पे अपने होंठ रख देना
यकीं आ जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है
तुम्हारे शहर के सारे दीये तो सो गए लेकिन
हवा से पूछना दहलीज़ पे ये कौन जलता है
अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
हर इक दरिया हजारों साल का अफ़साना लिखता है
कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा
मुझे मालूम है क़िस्मत का लिक्खा भी बदलता है
समन्दर पार करके जब मैं आया देखता क्या हूँ
हमारे दो घरों के बीच सन्नाटे का सेहरा है
मकाँ से क्या मुझे लेना मकाँ तुमको मुबारक हो
मगर ये घास वाला रेशमी कालीन मेरा है