भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उधारी व्याज के चलते बखत की मार के चलते / इन्दु श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उधारी व्याज के चलते बखत की मार के चलते
सरे बाज़ार हम रुसवा हुए बाज़ार के चलते

तेरे रहमोकरम पे जो अंधेरे तलघरों में थे
यक़ीनन रोशनी में आ गए अख़बार के चलते

ज़मीनी साज़िशों के और ऊपर की सियासत के
मुसलसल बीच में पिसते रहे घर-बार के चलते

ग़लत रस्ते में हो तुम और हम अपनी जगह पे हैं
बुज़ुर्गों की दिखाई रोशनी की धार के चलते