भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उनका हो जाता हूँ/ त्रिलोचन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चोट जभी लगती है

तभी हँस देता हूँ

देखनेवालों की आँखें

उस हालत में

देखा ही करती हैं

आँसू नहीं लाती हैं


और

जब पीड़ा बढ़ जाती है

बेहिसाब

तब

जाने-अनजाने लोगों में

जाता हूँ

उनका हो जाता हूँ

हँसता हँसाता हूँ।