उनकी बैठक / पंखुरी सिन्हा
अपनी बैठक पर उन्हें खासा फ़ख़्र था
'उन्हें' से ज्यादा 'उसे'
टीक की लकड़ी का आयात कर
उन्होंने दीवान बनवाया था,
और चार कुर्सियाँ ।
फैशनेबल फर्नीचर शो-रूम से
सोफ़े ख़रीदे गए थे,
और उसने सजाया था इस सब कुछ को
स्टेट-इम्पोरियम के हस्त-शिल्प से,
ट्राइबल-पेंटिंग्स
सीप के पर्दे
पर लोगों को कुछ भी पसंद नहीं
उसका अपना अंदाज़ तक नहीं
बालूचरी सूती साड़ियाँ
बिना काजल बिंदी वाला,
उसका अक़्स नहीं
तेज़ आवाज़ नहीं
लोगों को कुछ भी पसंद नहीं,
जबकि सब कुछ मध्यवर्गीय था,
सारे कमाए हुए पैसे,
रिश्वत की एक दमड़ी नहीं
पर अकड़ बहुत थी उसमें
और हातों के बाहर का माद्दा बहुत
इसलिए उस बैठक में होने वाली
सारी बातों की परिणति,
भयंकर बहसों में हो रही थी,
और अगर वह नाकाफ़ी था,
तो शहर में,
इन्टरनेट नामक उस जादुई जगह पर,
सबके अपने अपने पन्ने थे,
सिर्फ़ उसके ख़याल पूरी तरह आयातित,
और आयातित ख़यालों की वजह से,
वह एक विदेशी गुड़िया कहलाती जा रही थी
और जानकारों का कहना था,
कि पुरानी थी सब बातें
लेकिन नया था उनका मंचन,
नए प्रयोग थे,
नया था नदी का प्रवाह,
नए विकल्प थे,
नई थी इतने एहसासों की बातें,
मनुष्यता पर इतना बल
दोनों खेमों की पहचान की लड़ाई से इतर,
सिर्फ़ मनुष्यता से इतना बल
ये क्रॉस-बॉर्डर बातें,
और वह पिरोती जा रही थी,
उन्मुक्त भावों को,
सबकी नापसंदगी के बावजूद,
उसकी दलील थी,
कि अपनी पसंद से सजने चाहिए,
सबके पन्ने,
सजनी चाहिए,
सबकी बैठक
और उसकी दलील थी,
कि बाज़ार बहुत कुछ था
पर सब कुछ नहीं,
और उसकी दलील थी,
कि बाज़ार बड़ी आसानी से,
द्रवित होने वाला,
सरल तत्वों से बना,
एक नरम दिल हस्ती था—
जिससे बातें की जा सकती थीं,
उसकी दलील थी कि,
उसे किसी भी क्षेत्र को
आयात-क्षेत्र में नहीं बदलना था,
एक बराबर की अनुभव वार्ता करनी थी ।