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उनके उपकार याद आते हैं / शोभा कुक्कल

 
उनके उपकार याद आते हैं
लोग जब उस जहां से जाते हैं

हाथ खाली है पेड़ भी खाली
फिर भी कुछ लोग गीत गाते हैं

लोग होते हैं कुछ यहां रुसवा
और कुछ शुहरते भी पाते हैं

सुब्ह वक़्त हम उदय हो कर
शाम के वक़्त डूब जाते हैं

खुश लिबासी भी देखिये इनकी
ये परिंदे जो चहचहाते हैं

मिलने देगा न ये जहां हमको
आओ दरिया में डूब जाते हैं

सब्र करते हैं जो मिले 'शोभा'
हम कनाअत से दिल बिताते हैं।