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उनको मत दिल से कभी अपने लगाना / प्राण शर्मा
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उनको मत दिल से कभी अपने लगाना,
अच्छा रहता है सभी झगड़े भुलाना।
टूटने लगता है सारा ताना-बाना,
आँधियों में टिकता है कब शामियाना।
एक दिन की बात हो तो चल भी जाये,
रोज़ ही चलता नहीं लेकिन बहाना।
हो भले ही कोई सूना-सूना आँगन,
ढूँढ लेता है परिंदा दाना-दाना।
कुछ न कुछ तो खूबियाँ होंगी कि अब भी,
याद करते हैं सभी बीता ज़माना।
लेना तो आसान होता है किसी से,
दोस्त, मुश्किल होता है कर्ज़ा चुकाना।
`प्राण` इन्सां हो भले ही हो परिंदा,
हर किसी को प्यारा है अपना ठिकाना।