उनसे मिलिए जो यहाँ फेर-बदल वाले हैं
हमसे मत बोलिए हम लोग ग़ज़ल वाले हैं
कैसे शफ़्फ़ाफ़ लिबासों में नज़र आते हैं
कौन मानेगा कि ये सब वही कल वाले हैं
लूटने वाले उसे क़त्ल न करते लेकिन
उसने पहचान लिया था कि बग़ल वाले हैं
अब तो मिल-जुल के परिंदों को रहना होगा
जितने तालाब हैं सब नील-कमल वाले हैं
यूँ भी इक फूस के छप्पर की हक़ीक़त क्या थी
अब उन्हें ख़तरा है जो लोग महल वाले हैं
बेकफ़न लाशों के अम्बार लगे हैं लेकिन
फ़ख्र से कहते हैं हम ताजमहल वाले हैं