सन् 1921 में असहयोग आन्दोलन बड़े पैमाने पर शुरू हो जाता है। नवजागरण की लौ शहर गाम हर जगह पहोंचने लगती है। गांधी और भगतसिंह के विचार लोगों के सामने आते हैं। उनके बीच टकराव भी सामने आता है। क्या बताया भला:
उन्नीस सौ इक्कीस मैं असहयोग आन्दोलन की जंग छिड़ी॥
पूरे भारत की जनता फिरंगियां गेल्यां फेर आण भिड़ी॥
जलूस काढ़ते जगां जगां पै गांधी की सब जय बोलैं
भारत के नर नारी जेल गये जेल के भय तैं ना डोलैं
कहैं जंजीर गुलामी की खोलैं आई संघर्ष की आज घड़ी॥
नौजवान युवक युवती चाहवैं देश आजाद कराया
कल्पना दत्त नै कलकत्ता मैं चला गोली सबको बताया
आजादी की उमंग सबमैं भरी नौजवान सभा बनी कड़ी॥
ज्योतिबा फुले का चिंतन दलितां नै बार बार पुकौर था
मनु नै जो बात लिख दी उन बातां नै जड़तै नकारै था
नवजागरण की चिंगारी देश मैं सुलगै जगां जगां पड़ी॥
एक माहौल आजादी का चारों कान्ही जन जन मैं छाया फेर
गांधी भगतसिंह का विचार आपस मैं टकराया फेर
कहै रणबीर बरोने आला ढीली होई फिरंगी की तड़ी॥