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उन को आना था मगर रास्ता नहीं देखा / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
उन को आना था मगर रास्ता नहीं देखा
बरस हुए हैं कभी आईना नहीं देखा
ज़िगर के खून से लिखता है वो मज़मू खत का
हम ने ऐसा तो कोई आशना नहीं देखा
निगाह में था इंतज़ार बेक़रारी भी
उदासियों का मगर सिलसिला नहीं देखा
वो यक़ीनन है बेवफ़ाइयाँ नहीं करता
अगरचे हम ने उसे बावफ़ा नहीं देखा
कई. अजाब हैं गुज़रे कई लाशें देखीं
पर इतना खौफ़नाक हादसा नहीं देखा
उलट पलट गयीं हैं हसरतें उमीदें. भी
था जिंदगी ने कोई जलजला नहीं देखा
बहुत दिये हसीन तुम ने दर्द बेखुदी के अलम
नवाजिशों. को ऐसे बारहा नहीं देखा