उन ध्वनियों का अर्थ पता करने से भी लाभ क्या?
कवि कोई पौराणिक चरित्र नहीं।
जंगल में शाप से अभिशप्त
वनवास की अवधि में
वृक्ष के नीचे लेटे हुए
अब कोई नहीं समझता पक्षियों की भाषा।
तब पक्षी क्या सोचते हों-- कौन जाने?
पर प्रकट है
उन्नीस सौ सत्तासी के दिसम्बर में
कविता इसी बात को लेकर लिखी जा सकती है।