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उन बिन लम्बी रातों का क्या? / शैलेन्द्र सिंह दूहन

उन बिन लम्बी रातों का क्या?
सावन की बरसातों का क्या?
रूठ बहारें रोती हैं अब
कोयल धीरज खोती हैं अब
आज पपीहे गीत सुना मत
उन बिन इन जजबातों का क्या?
सावन की बरसातों का क्या?
गमक बदरवे डाँट रहे हैं
नर्म बिछोने काट रहे हैं,
यादों की सिलवट में लिपटी
है मीठी सौगातों का क्या?
सावन की बरसातों का क्या?
सरर-सरर पुरवाई डोले
टरर-टरर टर दादुर बोले,
रिम झिम झरती मस्त सुबह के
उन बिन सब हालातों का क्या?
सावन की बरसातों का क्या?
खिलते अब अरमान नही वे
अधरों पर मुस्कान नहीं वे,
सब कुछ लगता रूखा-रूखा
उन बिन रूखी बातों का क्या?
सावन की बरसातों का क्या?