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उन से उम्मीदे-करम रख ऐ दिले-नाशाद कम / मेला राम 'वफ़ा'
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उन से उम्मीदे-करम रख ऐ दिले-नाशाद कम
इश्क़ में होती है ममनूने-असर फ़रयाद कम
जिस पे हम भूले हुए हैं ये भी है क़िस्मत की बात
उस को भूले से भी आती है हमारी याद कम
उनका मिलने का सलीक़ा दिलरुबा तो है बहुत
दिल से मिलते हैं हसीनाने-फरंगी-ज़ाद कम
आज दुनिया में नहीं बेदाद-ख़ू तुम से अगर
पाओगे हम सा भी कोई ख़ूगरे-बेदाद कम
काम ले फ़िक्र-ए-सुख़न में दिल से भी जिन का दिमाग
इस ज़माने में हैं ऐसे ऐ 'वफ़ा' उस्ताद कम।