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उपकारी नदी / रुचि जैन 'शालू'
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कल-कल कल-कल नदियाँ बहतीं
लहरों से सरगम है गातीं
मोटी-पतली धाराएं
मुख्य नदी में मिल जातीं
बड़ी चट्टान से टकराकर
तेज़ बौछार मारती रहतीं
नदियाँ अपने निर्मल जल से
जल-जीवन को स्वस्थ बनातीं।