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उपटि गेल बीट बांस, कनसुपती भेटत कौने बजार / दिलीप कुमार झा

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'रहि-रहिक' आबि रहलए
कोनो स्त्रीक अन्तर्मनक साधल स्वर
लोक आस्थाक प्रति सम्पूर्ण समर्पणक संगीत
महमहा उठल अछि वातावरण
आठहि काठ के कोठरिया हे दीनानाथ!
रुपहि जड़ल केबाड़
उगियौ जल्दी भेल अरघक बेर
उपटि गेलै एकेटा छलै जे बांसक बीट हे दीनानाथ!
कनसुपति भेटत कौने हाट-बजार
बुढ़िया बाबीक कबुलाक कोना करब निर्वाह
 धन छथि सुन्दर कुम्हार
जिनका आबामे एखनो पाकनि एहन गढ़ल कोसिया-कुरबार
एहि शान्त जलमे कतेक रमणगर देखा रहलए बिम्ब
ठाढ़ भेल ई छड़गर कुसियार
 उठैत-बसैत मैंया एलि घाटपर
झुनकुट भेलौं काया भेल क्षीण
गाब' लगली सात बेर उठैत बैसैत एलहुं हे दीनानाथ!
उठबै नै छ' कियो हमर भार
सुनै छथि सकल परिवार
मैंयाक आस्था उमरि आयल फेर
जैह जुड़ल सैह अनलौं हे दीनानाथ!
धियापुता कें ने हुए कुशक कलेप
 छोड़ि देलकै सभ जोतब कोड़ब खेत पथाड़ हे दीनानाथ!
कोना करब ढकिया, सूपक उपयोग
नै जे देब ईहो अरघ
बन्न भ' जायत ईहो उद्योग
कत' सँ आनब अल्हुआ, सुथनी, आदी आ हरदिक हरियर अरघ हे दीनानाथ!
उपटि गेल नेबो लताम
पड़ती पड़ल अछि सभटा बाड़ी-झाड़ी
 कोना क' करब ओरियान
अपने सं की अछि झांपल हे दीनानाथ!
थिकहुं जे सनमुख नाथक नाथ
उगु जल्दी भेल अरघक बेर।