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उपसंहार / ब्रज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
ओले गिरने के बाद की शाम है ये
इसमें बहुत अप्रिय-सी ठंडक है
अभी तक विदा नहीं हुई वह दुर्गन्ध
जो दोपहर में फैल गई थी
जो फ़सलों को कुचल रही थी
अपने वज़नदार पैरों से
बरसात बन्द नहीं हुई पूरी तरह
जो बदलती जा रही है
किसानों की आँखों की टपटप में
एकदम आ गया अंत
इतने दिनों से बढ़ रही उम्मीद का
समय से जुड़े कुछ अवसाद के मुहावरे
टहलने लग गए
दूधवाले का रुंआसा चेहरा
आज के दिन का उपसंहार हुआ