भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उफ, बस्ता कितना भारी है / उषा यादव
Kavita Kosh से
माँ, तेरी छोटी-सी गुड़िया,
इसको उठा-उठा हारी है।
उफ़, बस्ता कितना भारी है।
कैसे करूँ किताबें कम कुछ,
सब विषयों को पढ़ना होगा।
पेंसिल बाक्स छूट न जाए,
इसे ध्यान से धरना होगा।
अपनी सब चीजें सँभालकर
ले जाना होशियारी है,
उफ़, बस्ता कितना भारी है,
इंटरवल में भूख लगेगी,
लंच बाक्स भी बड़ा जरूरी।
टाफी की रंगीन पन्नियाँ,
ले जाना भी है मजबूरी।
राधा को गुड़िया की शादी
की करनी तैयारी है।
उफ़ बस्ता कितना भारी है!
अरे, रसीद बुक भी है इसमें,
इसको तो मैं भूल गई थी।
टिकट फेट के बेचूँ, कहकर
मिस ने कल ही तो यह दी थी।
माँ, तेरी नन्ही बिटिया पर,
ढेरों जिम्मेवारी है।
उफ़, बसता कितना भारी है !