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उभरेगा कभी जो है अभी डूबता चेहरा / रमेश 'कँवल'

उभरेगा कभी जो है अभी डूबता चेहरा
कंकर न इसे मारो कि है फूल-सा चेहरा

तनवीर1 मिली हर्फ़े-सियह2 से भी जहां को
कोरा था जो काग़ज़ वो है अब वेद का चेहरा

कुछ धूल भी दरपन पे है लम्हों के सफ़र की
कुछ ग़म की तपिश से भी हुआ सांवला चेहरा

मै पेड़ हूं, दम लेते हैं, सब छांव में मेरी
झुलसे है मगर धूप में तन्हा मेरा चेहरा

अहसास के आंगन में कोर्इ फूल खिला है
आता है बहुत याद 'कंवल’ यार का चेहरा


1 रोशनी, ज्ञान 2. काले अक्षर।