उम्मीद के बारे में / प्रभात मिलिन्द
मैं बरसों से एक
अच्छी ख़बर की उम्मीद में हूँ
अच्छी ख़बर कुछ भी हो सकती है ...
किसी रोज़ बीमार माँ को
मयस्सर हो जाए नींद की एक पूरी रात
किसी रोज़ दुनिया के बच्चों को हो जाए तसल्ली
कि जिनसे डराती हैं माएँ उनको
हकीक़त में वह शैतान कहीं है ही नहीं
किसी रोज़ एक उड़ती हुई ख़बर कानों तक पहुँचे
कि अब दोस्तों को भी यक़ीन होने लगा है
बदलेगी किसी न किसी रोज़ यह दुनिया !
किसी रोज़ उस नज़्म की तामीर हो जाए
बरसों तक ज़ेहन में होकर भी
जो लिखी नहीं जा सकी है अब तलक
अच्छी ख़बर कुछ भी हो सकती है ...
कभी सोचा है आपने
कि छद्म क्रान्तिकारियों से मुक्त होकर
कैसी दिखेगी यह धरती
जब बन्दूकें देखने के लिए
आपको जाना होगा अजायबघर
और इतिहास को नए अन्दाज़ में
लिखने की ज़िद करने वाले लोग
एक रोज़ अचानक खो बैठेंगे अपनी याददाश्त
कितनी हैरतअंगेज बात है इतनी बड़ी दुनिया में
एक अदद अच्छी ख़बर के टोटे पड़ जाएँ !
और कुछ नहीं तो एक गुमनाम ख़त ही आ जाता
जिस लड़की को लिखा था मैंने
एक अनुत्तरित पत्र कोई बारह साल पहले
'कामसूत्र' को छोड़कर उपयोग में
न आने वाली दुनिया की तमाम क़िताबें
नष्ट कर दी जातीं एक रोज़
एक रोज़ जनपद के सबसे बड़े कवि मिलने पर
पूछते आमफ़हम ज़ुबान में मेरी ख़ैरियत
एक अच्छी ख़बर होती यह !
कोई अचरज की बात नहीं
कि अच्छी ख़बरों की यह क़िल्लत
आने वाले दिनों में और गहरी हो जाए ...
आने वाले दिनों में लेकिन
अच्छी ख़बरों की उम्मीद ही हमें ज़िन्दा रखेगी