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उम्मीद / नाज़िम हिक़मत / सुरेश सलिल

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मैं नज़्में लिखता हूँ
वे छप नहीं पातीं
लेकिन छपेंगी

मैं एक ख़ुशख़बरी वाले ख़त के इन्तज़ार में हूँ
मुमकिन है वो मेरे मरने के दिन आए
लेकिन आएगा ज़रूर

दुनिया सरकारों और दौलत से नहीं चलती
अवाम की हुकूमत से चलती है
अब से सौ साल बाद सही
दुनिया अवाम की हुकूमत में ही चलेगी ।

०२ सितम्बर १९५७

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल