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उम्मीद / बाल गंगाधर 'बागी'
Kavita Kosh से
उम्मीद का नाम ही सवेरा है
वर्ना जिन्दगी अंधेरा-अंधेरा है
उजालों के लिए लड़ना अंधेरों से
वर्ना फिर यहाँ तेरा नहीं बसेरा है
नजर जहाँ तक जाये देखते जाओ
हालात क्या है कैसा लगा मेला है
समाज का तजुर्बा कमरे मंे नहीं होता
बाहर देखो भी दुनिया का क्या झमेला है
दुश्मनी करके लोग यहाँ तन्हा हैं
मगर प्यार करने वाला नहीं अकेला है