उम्मीद / महेश कुमार केशरी
किसान अपने खेतों में बीज
रोपता है , उसे सींचता है
क्योंकि उसे
मालूम है कि कल को जो
फसल आयेगी तो उससे
लोगों का जीवन सुख से
महकेगा !
उसे पूरा भरोसा है कि
फल - फूलों के बाद
फसल जरूर
आयेगी l
दु:ख के दिन बुहर जायेंगे
और, सुख किलकारियांँ
भरेगा
वसुंँधरा की गोद में !
चिड़ियाँ सुबह जब अपने
घोंसले से निकलती है,
तो उसे मालूम होता है,
कि, उसे खाना मिलेगा
और, शाम को अन्न से
उसका पेट भरा - भरा होगा l
काम पर जाते हुए
आदमी
के लिए, इस उम्मीद में
गृहणी खाना बनाती है,
कि जब रात होगी तो
बच्चे और उसका आदमी
लौटेंगे खाने के लिए खाना l
प्रेमिका भी अपने प्रेमी का
एक खास समय में खास
जगह करती है, इंतज़ार
उसे पता है कि एक तय
वक्त में वो, मिलने आयेगा l
परदेश कमाने गये
आदमी का इंतजार
मुँड़ेर पर बैठा कौआ
तक करता है..
जब इतने उम्मीदों से
भरी हुई है दुनियाँ तो,
लोग नाउम्मीद क्यों
होतें हैं?
जब, मालूम है कि ऋतुएँ ,
बदलेंगीं !
पतझड़ के बाद वसंत लौटेगा !
बागों में फिर से फूल खिलेंगे
आमों पर फिर से मोजरें
लगेंगीं..
चिड़ियाँ, बागों में
फिर, चहचहायेगी
और, प्रेमियों के मन में फागुन उफान मारेगा!